354 दिन बाद किसानों ने रिबन काटकर शुरू करवाया बसताड़ा टोल प्लाजा
After 354 days, farmers started Bastara toll plaza by cutting ribbon
After 354 days, farmers started Bastara toll plaza by cutting ribbon: करनाल। किसान आंदोलन के कारण बंद बसताड़ा टोल प्लाजा आज 354 दिनों के बाद शुरू हो गया। इसकी शुरुआत किसानों ने रिबन काटकर की। अब जो भी वाहन दिल्ली-चंडीगढ़ मार्ग पर बसताड़ा से गुजरेगा, उसे बढ़ा हुआ शुल्क अदा करने के बाद ही क्रॉसिंग मिलेगी। 25 दिसंबर 2020 से टोल बंद था। किसान आंदोलन के खत्म होने की घोषणा के बाद बसताड़ा टोल को शुरू करने के लिए टोल कंपनी एक्टिव हो गई थी। कंपनी द्वारा टोल पर साफ सफाई सहित अन्य कार्य करवाया गया।
बीती 5 दिसंबर 2020 को एनएचएआई ने टोल ऑपरेट कर रही कंपनी सोमा रोडीज को टर्मिनेट कर दिया था। इसके बाद हाइवे ऑथोरिटी ने टोल वसूली का जिम्मा ईगल कंपनी को दिया, लेकिन 25 दिसंबर को टोल फ्री होने की वजह से टोल चालू नहीं हो पाया। बसताड़ा टोल के लिए एनएचएआई ने नया अनुबंध पाथ इंडिया के साथ किया है। तीन दिसंबर 2021 से पाथ इंडिया का अनुबंध शुरू हो गया है।
टोल से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, बसताड़ा टोल से रोजाना 30 से 35 हजार छोटे वाहन गुजरते हैं। जिनमें कार व जीप जैसे व्हीकल शामिल हैं। वहीं रोजाना 8 से 10 हजार बढ़े व भारी वाहनों की क्रॉसिंग होती है। टोल फ्री होने से पहले बसताड़ा टोल से सरकार को प्रतिदिन करीब 70 लाख का राजस्व मिल रहा था। 25 दिसंबर 2020 से टोल फ्री होने से सरकार को 2 अरब 48 करोड़ से अधिक हानि हुई।
एनएचएआई प्रोजेक्ट डायरेक्ट वीरेंद्र सिंह ने बताया कि पहले तो हम किसानों को बधाई देना चाहेंगे। किसानों की मांगे पूरी हुई है। जो किसान यहां पर थे, उन्होंने किसी भी प्रकार की असामाजिक गतिविधि नहीं की। शांतिपूर्वक तरीके से आंदोलन पूरा किया। टोल की व्यवस्था पूरी तरह से तैयार है। किसानों ने अपनी सहमति जता दी है। वहीं एनएचएआई के निर्देश भी मिल चुके हैं। अब टोल टैक्स लेना शुरू हो गया। आंदोलन के कारण शुल्क में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। सालाना वृ्द्धि के हिसाब से शुल्क तय किया है।
किसान जगदीप ओलख ने कहा कि आंदोलन में जीत दर्ज करने और जश्न मनाने के बाद आज बसताड़ा टोल पर आंदोलन का समाप्त किया है। एक साल तक आंदोलन चलवाया। उन्होंने कहा कि किसानों ने कैमला में सीएम का जाहज नहीं उतरने दिया। नेताओं का विरोध किया। प्रशासन की लाठियां खाई। कुल मिलाकर आंदोलन में अहम योगदान दिया। किसान नेता बहादुर मैहला का कहना है कि पिछले 1 साल से यहां बैठे। लंगर लगाया। लाठीचार्ज में एक किसान भाई सुशील काजल की मौत हुई। संघर्ष की चिंगारी यहां से उठी थी। पूरे साल के त्योहार यहीं पर मनाए। इतिहास में टोल का नाम दर्ज रहेगा।